भारतीय लोकतंत्र का ये नया शत्रु अपराधियों के राजनीतिकरण से भी अधिक भयावह है, एक अपराधी का आम जनमानस को पता होता है कि वो अपराधी है, लेकिन इस प्रणाली मे एक साधारण व्यक्ति किस पर संदेह करे, यहॉ तो जिसे खेत के रक्षक का काम करना चाहिये था वो खुद फसल को खा कर खेत बेचने के सौदे कर रही है,